मैंने द्वार खटखटाया
खिड़की से पूछता है कौन है ?
मैंने कहा
तुम्हारी बन्दगी !
तुम्हारी जिन्दगी !
तुम्हारी रिदा !
तुम्हारी दुआ !
वो बोला
अभी घायल हूँ बहुत
जिन्दगी ने जख्म दिए है बहुत
मरहम की जरूरत है अभी .....तुम्हारी नहीं !
और खिड़की बंद कर दी ...!
और मैं ..
आंख में आंसू लिए चल पड़ी अपरिचित राह पर .- विजयलक्ष्मी
खिड़की से पूछता है कौन है ?
मैंने कहा
तुम्हारी बन्दगी !
तुम्हारी जिन्दगी !
तुम्हारी रिदा !
तुम्हारी दुआ !
वो बोला
अभी घायल हूँ बहुत
जिन्दगी ने जख्म दिए है बहुत
मरहम की जरूरत है अभी .....तुम्हारी नहीं !
और खिड़की बंद कर दी ...!
और मैं ..
आंख में आंसू लिए चल पड़ी अपरिचित राह पर .- विजयलक्ष्मी
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