Thursday 13 June 2013

अख़बार में छनकर खबर आती है

सत्य लावारिस दिखता तो है..
पर सच कहना तन्हा होता कब है ..
वेदना और सम्वेदना जग रही है 
सोने दो जिन्हें सूरज चढ़े अँधेरे नजर आते है 
चमगादड़ के शहर में कुछ अनोखा सा हुआ होता तो कुछ बात थी 
शब्द यहाँ शातिर थोड़ी सी शातिरी कर गये सच है 
ऊँचे मकानों में अँधेरे ही रहते है ज्यादातर 
और व्ही गूंजती है चीखे राहों पर आवाज नहीं आती 
हमारा हर खत चौराहे पर टंगा है
अख़बार में छनकर खबर आती है 
कच्चे मॉल की जरूरत है ऊँची कुर्सी वालों को पंहुचा देना
हमे जिन्दगी की साँझ औ सहर से फुर्सत नहीं होती
चस्पा दिया है सफरनामा ...मिल गया दालान में
इक आशादीप रोशन रहेगा मकान में .
- विजयलक्ष्मी 



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