Monday, 24 June 2013

ढूंढ रखना रूह को भी,,,

तेरी मुंडेर ने रंग बदल लिया है अपना ,,,
बता ,,कैसे उतरती चाँदनी आँगन में तेरे .

दाना तो खूबसूरत है जाल बिछाया क्यूँ ,,,
गौरैया को क्या कैद करेगा आँगन में तेरे .

तमन्ना ए जिंदगी न खत्म हों जाये मेरी ,,,
सम्भल ए जिंदगी, थमे कैसे आँगन में तेरे.

तोड़ कर राहों को फेकता है अक्सर खुद ,,,
कोयल चहकेगी कैसे बताना आंगन में तेरे .

जो रुखसती चाहता हों खुद ही खुद से भी ,,,
क्यूँ डाल पर नहीं बैठने देता आँगन में तेरे .

न हों मर गयी तो ...ढूंढ रखना रूह को भी ,,,
समा लेना पिंजरे में रखना आँगन में तेरे..
-- vijaylaxmi 

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