Thursday 27 June 2013

रुनझुन बरखा बरस रही संग मेरे अंगना

स्वर टूटे नहीं है बांसुरी अधूरी नहीं है ,
दीखते छिद्र उसके स्वरों को देते है पूर्णता 
बिन दर्द सरसता कहा उठती है गीतों में 
नाचती है जिन्दगी भी लिए संगीत सी समरसता
विरह वेदना निखर निखर बिखरे जब नयनों से 
गूंजते कितने स्वर विह्वल से रंग लिए हो सार्थकता 
रुनझुन बरखा बरस रही संग मेरे अंगना 
सुनहली सपनीली सी एक सुरीली गीतों की अभिव्यंजना
.- vijaylaxmi 

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