जिन्दगी की जद्दोजहद में पसीना सा लहू बहा करता है अक्सर
जिन्हें पेशानी पर बूँद दिखती है वो यूँही खुद से पूछा करते है अक्सर
हर वाद और वाद का टकराव हर बार रूप बदलता है अक्सर
जिन्दा जिसे कहती रही दुनिया मरा सा मिलता है तन्हाई में वही अक्सर .- विजयलक्ष्मी
जिन्हें पेशानी पर बूँद दिखती है वो यूँही खुद से पूछा करते है अक्सर
हर वाद और वाद का टकराव हर बार रूप बदलता है अक्सर
जिन्दा जिसे कहती रही दुनिया मरा सा मिलता है तन्हाई में वही अक्सर .- विजयलक्ष्मी
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