Tuesday, 4 June 2013

और खिड़की बंद कर दी ...!

मैंने द्वार खटखटाया 
खिड़की से पूछता है कौन है ?
मैंने कहा 
तुम्हारी बन्दगी !
तुम्हारी जिन्दगी ! 
तुम्हारी रिदा !
तुम्हारी दुआ !
वो बोला 
अभी घायल हूँ बहुत 
जिन्दगी ने जख्म दिए है बहुत 
मरहम की जरूरत है अभी .....तुम्हारी नहीं !
और खिड़की बंद कर दी ...!
और मैं ..
आंख में आंसू लिए चल पड़ी अपरिचित राह पर
.- विजयलक्ष्मी

रिदा = ख़ुशी 

No comments:

Post a Comment