स्मित रेख उभर कपोल तक निकल चली ,
बरसात नयन संग ढुलकी मोती बन चली .
नक्शे में नक्स अक्षी में अक्ष प्रतिबिम्बित
घुंघटपट डाल मस्तक नार अलबेली चली .
रुदन रुदाली मरुथल जीवन अविरल अगन
तपिश सूर्य सम प्रखर अंगार अकेली चली .
दुष्ट हन्ता जीवन कन्ता कटार संग थी खेली
राख सिद्ध नयन गिद्ध प्रगट संत से बाहुबली
अरि मस्तक पर हो सवार निरत निरत बहु
कौन रहे मौन शीतल चन्द्र अरु अली कली .- विजयलक्ष्मी
बरसात नयन संग ढुलकी मोती बन चली .
नक्शे में नक्स अक्षी में अक्ष प्रतिबिम्बित
घुंघटपट डाल मस्तक नार अलबेली चली .
रुदन रुदाली मरुथल जीवन अविरल अगन
तपिश सूर्य सम प्रखर अंगार अकेली चली .
दुष्ट हन्ता जीवन कन्ता कटार संग थी खेली
राख सिद्ध नयन गिद्ध प्रगट संत से बाहुबली
अरि मस्तक पर हो सवार निरत निरत बहु
कौन रहे मौन शीतल चन्द्र अरु अली कली .- विजयलक्ष्मी
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