Friday, 28 June 2013

यहाँ आदमखोर भी है

भूख ही भूख पसरी पड़ी है...
यहाँ से वहां तक हर सडक हर चौराहे पर 
दरवाजे से लेकर दूर खुले मैदानों तक कोयले की खानों तक 
कही राशन की लम्बी कतारों में 
कहीं गिनती बढाती अनाथालयों की दीवारों पर 
नौकरियों के लिए बढ़ते हाथों में प्रार्थना पत्र के साथ चिपक कर 
विद्यालय में शिक्षार्थ जाती दुकानों के रजिस्टरों में 
न्यायालय के बाहर खरीदते बिकते न्याय के मचानों पर 
पेशकारों की मेज के नीचे भी उगती है भूख 
सरकारी तन्त्र की भूख चपरासी से लेकर आलाकमान तक पहुंचती है सरकार तक
बहुत लम्बी है भूख यहाँ ..
किसी और देश की भूख क्या खाती है नहीं मालूम
जनता भूख के कारण पसीना बहा रही है तप रही है चटक धुप में
सुनहला तले जाते है सूरज की कढाई में दिन भर
कुछ चोरी करने को मजबूर है कुछ चाकू खंजर उठा रही है
भूख नक्सलवाद भी बढ़ा रही है
भूख ही आंतकवाद का नमूना दिखा रही है
सबकी भूख अलग अलग है ..
यहाँ रोटी की भूख तो आम जनता को होती है
नजर की भूख बेचारे दिल के मरे ढूंढते है सहारे
मगर कुछ भूख बहुत खासमखास होती है ..
राजनैतिक रोटी इस आग पर सिकी खाती है
किसी को धर्म की भूख इतनी है इंसान इंसान को मार कर खा रहा है
किसी को धन की भूख है
किसी को सत्ता की भूख है इस कदर अपना अपने को खाने को मजबूर है
भेड़िये छिपे है यहाँ इसानी शक्ल में तन की भूख है जिन्हें
यहाँ आदमखोर भी है
योगी भी है भोगी भी ..भक्त है यह कुछ बने भगवान भी है
पूजने की सुनी थी यहाँ पुजने की भी भूख है
किसी किसी को भूखी हंसी भी नहीं भाती..उसे भी उजाड़ने की भूख है
जिस दिन इस भूख को भूख लग गयी क्या होगा
उस दिन उत्तराखंड के प्राकृतिक हादसे से बड़ा कोई हादसा होगा
जहां मानवता का विनाश होगा ..
सम्भल जाओ ..धन लालसा को इतना न बढाओ ..
भूख बढ़ानी है तो छीना झपटी की नहीं ..
मानवता के दुश्मन न बनो अपने खेतो में सौहार्दय का बीज डालो
कथा सुनो व्यथा मिटाओ ...बस नफरत की भूख मत बढाओ
.- विजयलक्ष्मी

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