हर पदार्थ अपनी पराकाष्ठा पर पहुंचकर बिखरता ही है ,
पत्थर को तराशना जरूरी है अन्यथा मूर्ति मूर्त रूप नहीं लेती
उसे पूजना है सजना है या प्राणप्रतिष्ठा करनी है
जानता सृजनहार है केवट किन्तु नैया का खेवनहार है
आंसू गिरेंगे तो बहेंगे ,,भावना होगी तो उठेगी
धरती महकेगी गुलों से ..सूरज है अँधेरा हो क्या ये सम्भव है .- vijaylaxmi
पत्थर को तराशना जरूरी है अन्यथा मूर्ति मूर्त रूप नहीं लेती
उसे पूजना है सजना है या प्राणप्रतिष्ठा करनी है
जानता सृजनहार है केवट किन्तु नैया का खेवनहार है
आंसू गिरेंगे तो बहेंगे ,,भावना होगी तो उठेगी
धरती महकेगी गुलों से ..सूरज है अँधेरा हो क्या ये सम्भव है .- vijaylaxmi
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