मुहब्बत गर हर्फों में बयाँ होती, हरूफ हरूफ लिखते ,
मैहर में मांगनी पड़ी तुम्हे तो तुम्हारी ही मेहरबानी थी .- vijaylaxmi
शैदा समझती है आज भी दुनिया जिसकी खातिर मुझे ,
वो दबी जुबाँ से भी कभी शनाख्त ए शनासाई कबुलते नहीं .
शहाब है वो जमीं पर शहामत से है उसकी वाकिफ
साहिबे अख़लाक़ ओ साबिर, पनाह शहर खमोशां में कबुलते नहीं .- vijaylaxmi
आइना सी बात चुप सुने था कोई
हर अपनी सीधी सटीक लगे जितनी
उससे भी खूबसूरत
बात कहे जा आइना !!.- vijaylaxmi
मैहर में मांगनी पड़ी तुम्हे तो तुम्हारी ही मेहरबानी थी .- vijaylaxmi
शैदा समझती है आज भी दुनिया जिसकी खातिर मुझे ,
वो दबी जुबाँ से भी कभी शनाख्त ए शनासाई कबुलते नहीं .
शहाब है वो जमीं पर शहामत से है उसकी वाकिफ
साहिबे अख़लाक़ ओ साबिर, पनाह शहर खमोशां में कबुलते नहीं .- vijaylaxmi
आइना सी बात चुप सुने था कोई
हर अपनी सीधी सटीक लगे जितनी
उससे भी खूबसूरत
बात कहे जा आइना !!.- vijaylaxmi
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