समेटते है सामाँ ए मुहब्बत जब भी दीवाने से हुए हम ,
क्यूँ खींचकर दामन गिरा जाते हो अपने हाथो से सारा ,
छोड़ भी न सके जमीं पर झुककर खुद ही बटोरते भी हो
बहाना करते हो झगड़े का क्यूँ भला झूठ बोलते हो खुदारा
मनाना तुम्हारा छूकर गया जैसे हवा का नया झौका कोई
क्यूँ, कभी तेवर दिखाना कभी मुस्कुराना पास आकर यारा
पूछूं इक बात बता सकोगे क्या ...नाराजगी क्यूँ है हमसे
हाँ , मालूम है हमे ,नहीं कोई और तुमको हमसा प्यारा ..-- विजयलक्ष्मी
क्यूँ खींचकर दामन गिरा जाते हो अपने हाथो से सारा ,
छोड़ भी न सके जमीं पर झुककर खुद ही बटोरते भी हो
बहाना करते हो झगड़े का क्यूँ भला झूठ बोलते हो खुदारा
मनाना तुम्हारा छूकर गया जैसे हवा का नया झौका कोई
क्यूँ, कभी तेवर दिखाना कभी मुस्कुराना पास आकर यारा
पूछूं इक बात बता सकोगे क्या ...नाराजगी क्यूँ है हमसे
हाँ , मालूम है हमे ,नहीं कोई और तुमको हमसा प्यारा ..-- विजयलक्ष्मी
बहुत सुंदर.
ReplyDeleteachhi rachna
ReplyDeleteshubhkamnayen