Tuesday, 2 July 2013

उगते सूरज से रोशन हुए जन्म पर कन्या के थाली बजी हो शगुनों पर

कविता लिखी है अक्सर ..
पनघट की गौरी पर 
युवा होते छोरा छोरी पर 
चमकती बिंदी पर खनकती चूड़ी पर 
बहकते आंचल पर महकते आंगन पर 
..........कम लिखी खोये सिंदूरों पर 
खाली हुए हाथो के रीते सपनों पर 
रोते रहे जो दिन रत खोये सरहद पर अपनों पर 
देहलीज पर बैठी नजरों में जलते आस के दीप पर 
दुश्मन ने काट लिया वीरों के शीश पर 
लहू गिरता है खरबों की आबादी में हूरों के तलवों पर 
...........रौनक नहीं होती कभी शहीदों  के शहीदी  जलवों पर 
तालियों की गडगडाहट खूब सुनी फ़िल्मी गौरी पर
क्या याद है कभी ताली बजाई हो ख़ुशी में घर की छोरी पर..
चर्चे खूब हुए जमाने में जमानेवालो के  जीभर  घर घर मगर 
उगते सूरज से रोशन हुए जन्म पर कन्या के थाली बजी हो शगुनों पर 
......कितनी कलम चली गिनना समाज की कुरीतियों और गंदगी पर .- vijaylaxmi 

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