Friday, 5 July 2013

इंसानियत को जिन्दा रहने दो ...

कभी देखी है असली भारत की असली तस्वीर ,
लिखते हैं जो अपने हाथों से इस देश की तकदीर 
भूखो मार रहे है उन्हें ही वातानुकूलित कमरों वाले 
दिखते नहीं किसी भी उनके पाँव के छाले 
जाने कैसी तुच्छ सी तकदीर लिखाकर लाये है 
माल उन्ही का छीन उन्ही से सत्ता वाले खाए हैं 
हल की जगह हाथ में उनके बंदूकें मत आने दो
जरूरतभर जितनी रोटी उनको भी मिल जाने दो
मत चलो सियासी चाल ,
उनके लहू में उबाल तो न आने दो
हरित क्रांति होने दो ...
सडको पर लहू बहे ऐसी नौबत न आने दो
द्वेष भाव मत दिखलाओ ...
न करो सीनाजोरी तुम
सोये शेर सोये रहने दो .. उनकों सडकों पर न आने दो
बस सनद रहे ...पेट की भूख इंसान को ही नहीं मारती ...
इंसानियत को जिन्दा रहने दो ...
अरे ओ सरकार ..
जाति,धर्म की दीवार खींच...खाई न बढाओ ...मत फैलाओ भ्रष्टाचार
गर हम ही न रहे ...
जिन्दगी तुम्हारी क्या होगी ..
ये गुरुर सुरूर चहक महक गुजारिशों की कतार..
ठनक की बानगी ,दिखावे की ठसक ,पलटवार ..
तुम्हारा भ्रष्टाचार ...देखेगा और सहेगा कौन ..?
बोलो तुम ....क्या झूठ है सब कुछ !!
हाँ तुम्ही से पूछा ...क्यूँ बैठे हो मौन ..!!
- विजयलक्ष्मी


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