Monday, 15 July 2013

बयाँबाजी वाले धुरंधर बहुत मिले

नयन में जलते दीप सा जुगनू ..
उनवान वतनपरस्ती पलकों पे ठहरा क्यूँ 

ख्वाब देखना मना है आँखों को ..
पल मुश्किलात बोता है पलकों पे पहरा क्यूँ 

बरस, अब यूँ न सूख कर गुजर 
वजह न पूछ मुश्किलात पलकों पे सहरा क्यूँ 

नदी सा बहकर गुजर जा पत्थरों से 
क्या गहराई समन्दर..... पलकों पे गहरा क्यूँ

बयाँबाजी वाले धुरंधर बहुत मिले
बरस जाये गरजकर अँधेरा पलको पे गहरा क्यूँ
.- विजयलक्ष्मी 

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