आस की डोर नहीं टूटने दी
मेरे टूटने से क्या फर्क पड़ता है भला
टूटकर बिखरते रहे हम लम्हा लम्हा
छनकर बिखरते थे सिमटने की दरकार में..
तुम्हे ....फर्क पड़ता है ! ...अच्छा ..
नहीं मालूम था ...या मालूम था
इसीलिए बिखरते थे हम रह रह कर ..
तुम बेहतर जानते हो मुझसे ...मुझको भी .- विजयलक्ष्मी
मेरे टूटने से क्या फर्क पड़ता है भला
टूटकर बिखरते रहे हम लम्हा लम्हा
छनकर बिखरते थे सिमटने की दरकार में..
तुम्हे ....फर्क पड़ता है ! ...अच्छा ..
नहीं मालूम था ...या मालूम था
इसीलिए बिखरते थे हम रह रह कर ..
तुम बेहतर जानते हो मुझसे ...मुझको भी .- विजयलक्ष्मी
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