"एक सच कहूं तुमसे नहीं कह सकी आज तक
ये मुहब्बत किसी दिन मेरी जान लेकर ही मानेगी ,
बंद लबों के भीतर का सच तुमने न सुना गर
मर गयी वो किसी गम में दुनिया इतना ही जानेगी ,
तेरे शहर से रिश्ता पुराना था यूँ तो अपना भी
तुम मिलकर भी ये राज न खोलो तो किसे जानेगी ,
ये रंग कौनसा बिखरा है नहीं जानते हम यूँ तो
इन्तजार ए मौत या दुआ किस रंग से बता मानेगी",- विजयलक्ष्मी
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