सहर का कत्ल और शाम के उजाले ..
ये राह कौन सी है नंगे पांव जिस पर चल पड़े हैं
रास्तों से होकर गुजरते रिश्ते है ..या रिश्तों से गुजरते रास्ते
ज्ञान ध्यान किश्ती में सवार कांपता है जब ज्वार उठता है समन्दर में अहसास का
प्रसन्न होता है चन्दमा थमाकर तारो भरी थाली चांदनी के हाथ में
भोर का सूर्यकिरण सिंदूर से श्रृंगारित करती है स्वागत प्रथम
दालान का दीप मद्धम मद्धम प्रदीप्त ज्योति को लीलकर समाहित करता है प्रात:काल में ..
द्वंद और दुविधा नहीं जलता है एक दीप तुलसी के नाम पर
बस्तिया बदनाम है या नामवर सूर्य ने सोचा है क्या कभी
बस चमकता है की जलता है स्वयम में क्यूँ रहस्य है अभी
समय की जुगत भी कोई आचरण बदलती कैसे ..
शब्द खिलकर पुष्पित हुए आलोचित काँटों के बीच में
सहर का कत्ल और शाम के उजाले
ये राह कौन सी है नंगे पांव जिस पर चल पड़े हैं
रास्तों से होकर गुजरते रिश्ते है ..या रिश्तों से गुजरते रास्ते
साजिशों में शामिल है आशा की किरण
रंजिशों का शीर्षासन लगाना जरूरी है
रियासतें तुम्हारी और सियासतदारी बेगानों की
यूँ तो करेला है नीम भी मगर है गुणकारी
जहर उगलना काम है जिनका करें वो ..
दंतविहीन करने की कला में पारंगत होना चाहिए .
सहर का कत्ल और शाम के उजाले ..
ये राह कौन सी है नंगे पांव जिस पर चल पड़े हैं
रास्तों से होकर गुजरते रिश्ते है ..या रिश्तों से गुजरते रास्ते
रास्ते दिखते नहीं रिश्ते टिके हैं रूह में .. - विजयलक्ष्मी
ये राह कौन सी है नंगे पांव जिस पर चल पड़े हैं
रास्तों से होकर गुजरते रिश्ते है ..या रिश्तों से गुजरते रास्ते
ज्ञान ध्यान किश्ती में सवार कांपता है जब ज्वार उठता है समन्दर में अहसास का
प्रसन्न होता है चन्दमा थमाकर तारो भरी थाली चांदनी के हाथ में
भोर का सूर्यकिरण सिंदूर से श्रृंगारित करती है स्वागत प्रथम
दालान का दीप मद्धम मद्धम प्रदीप्त ज्योति को लीलकर समाहित करता है प्रात:काल में ..
द्वंद और दुविधा नहीं जलता है एक दीप तुलसी के नाम पर
बस्तिया बदनाम है या नामवर सूर्य ने सोचा है क्या कभी
बस चमकता है की जलता है स्वयम में क्यूँ रहस्य है अभी
समय की जुगत भी कोई आचरण बदलती कैसे ..
शब्द खिलकर पुष्पित हुए आलोचित काँटों के बीच में
सहर का कत्ल और शाम के उजाले
ये राह कौन सी है नंगे पांव जिस पर चल पड़े हैं
रास्तों से होकर गुजरते रिश्ते है ..या रिश्तों से गुजरते रास्ते
साजिशों में शामिल है आशा की किरण
रंजिशों का शीर्षासन लगाना जरूरी है
रियासतें तुम्हारी और सियासतदारी बेगानों की
यूँ तो करेला है नीम भी मगर है गुणकारी
जहर उगलना काम है जिनका करें वो ..
दंतविहीन करने की कला में पारंगत होना चाहिए .
सहर का कत्ल और शाम के उजाले ..
ये राह कौन सी है नंगे पांव जिस पर चल पड़े हैं
रास्तों से होकर गुजरते रिश्ते है ..या रिश्तों से गुजरते रास्ते
रास्ते दिखते नहीं रिश्ते टिके हैं रूह में .. - विजयलक्ष्मी
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