समय की छाती पर सवार होकर ही मंजिल मिलेगी .
तय है वक्त की रफ्तार ,हमे इससे तेज चलना होगा वक्त पकड़ने के लिए
साथ सफर करना है तो समय की कश्ती की पतवार सम्भालनी होगी
बहते हुए नदी की धार को नियंत्रित तो होना ही होगा
राष्ट्र निर्माण में लगना है आखिर खेल नहीं है गुम्मेबाजी का
छूकर गिरेंगे नहीं गिराना होगा झटके में ..
अन्यथा हलाल होने को तैयार माल है हमी आम जन ..- विजयलक्ष्मी
तय है वक्त की रफ्तार ,हमे इससे तेज चलना होगा वक्त पकड़ने के लिए
साथ सफर करना है तो समय की कश्ती की पतवार सम्भालनी होगी
बहते हुए नदी की धार को नियंत्रित तो होना ही होगा
राष्ट्र निर्माण में लगना है आखिर खेल नहीं है गुम्मेबाजी का
छूकर गिरेंगे नहीं गिराना होगा झटके में ..
अन्यथा हलाल होने को तैयार माल है हमी आम जन ..- विजयलक्ष्मी
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