सजा दें एक ख्वाब आँखों में तेरी भी अपना सा
आ दामन की छाया से गम ढक दूं तेरे वरना पहरा क्यूँ .
बिखरी तासीर ए तस्वीर तसव्वुर सी बेतरतीबी से
ठहर कर संवार जरा तकदीर ए तस्वीर वरना ठहरा क्यूँ .
लहर कर लहरे लहरे सी लहर उठती है सफर पर
वादी ए खुशबू ए गुल पुरवाई की कसम वरना सहरा क्यूँ .
शिनाख्त वक्त की कर लेते गर नामुराद रुक जाता
वक्त को बाँधने का हुनर कहाँ से पूछते गम वरना ठहरा क्यूँ .
शब्द ए शिनाख्त तौबा मेरी कब्र पर महक क्यूँ
चला जब महफ़िल से इन्तजार ए जहर है वरना ठहरा क्य
मुकम्मल मालूमात किसे है नहीं मालूम हमे भी
रही देहलीज पे दीप सी रौशनी की दरकार वरना ठहरा क्यूँ .
वही ख्वाब मुख्तसर सा पलकों पे थमकर गुजरा
ख्वाबों का सफीना मौत का मंजर सा वक्त वरना ठहरा क्यूँ .
सब सामने है खुली किताब सा आखों में ठहरा यहीं
कमी कुछ रही होगी हमारी आँखमिचौली सा वरना ठहरा क्यूँ.- विजयलक्ष्मी
आ दामन की छाया से गम ढक दूं तेरे वरना पहरा क्यूँ .
बिखरी तासीर ए तस्वीर तसव्वुर सी बेतरतीबी से
ठहर कर संवार जरा तकदीर ए तस्वीर वरना ठहरा क्यूँ .
लहर कर लहरे लहरे सी लहर उठती है सफर पर
वादी ए खुशबू ए गुल पुरवाई की कसम वरना सहरा क्यूँ .
शिनाख्त वक्त की कर लेते गर नामुराद रुक जाता
वक्त को बाँधने का हुनर कहाँ से पूछते गम वरना ठहरा क्यूँ .
शब्द ए शिनाख्त तौबा मेरी कब्र पर महक क्यूँ
चला जब महफ़िल से इन्तजार ए जहर है वरना ठहरा क्य
मुकम्मल मालूमात किसे है नहीं मालूम हमे भी
रही देहलीज पे दीप सी रौशनी की दरकार वरना ठहरा क्यूँ .
वही ख्वाब मुख्तसर सा पलकों पे थमकर गुजरा
ख्वाबों का सफीना मौत का मंजर सा वक्त वरना ठहरा क्यूँ .
सब सामने है खुली किताब सा आखों में ठहरा यहीं
कमी कुछ रही होगी हमारी आँखमिचौली सा वरना ठहरा क्यूँ.- विजयलक्ष्मी
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