Wednesday, 17 July 2013

अब अजाब सा उठता है दर कदम

हमे मनाने का हुनर नहीं आता आंसू ढुलक पड़ते है साथ में ,
दिल के रईस बहुत है हम मगर फक्कड़पन भी बसता है साथ में .
नहीं जानते थे उदासी कैसे उदास करती रही सभी को पल पल 
अब अजाब सा उठता है दर कदम तुम बिन बीज पलता है साथ में
.- विजयलक्ष्मी 

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