Sunday, 7 July 2013

सपने तो थे आंख में

सपने तो थे आंख में  
वक्त के बीतने का गम ज्यादा था 
सब बह गये वक्त की धार में 
कश्ती भेजी नहीं तुमने ..
सवार होते भी कैसे ...सब गीले होकर पलकों पे जम गये 
कट गयी नयन में रात सारी ..चाँद सूरज की क्या कहे 
...........कोई तारा बी नहीं था साथ हमारे ...
..........गुजरी कहूं कैसे वो रात जिसकी सुबह नहीं मिली मुझसे 
...शब्द तिरे ...डूबे ..बिफरे ..बिखरे ..फिर खो गये मुझमे ..
तुम्हे न आना था न तुम आये ...मगर ...
इम्तजार न गया ...मेरे पास से उठकर ..
कोई नहीं सोया ...सिवा तुम्हारे ..
हमने पाया ...बिखरे से ख्वाब में लिपटा इम्तजार ..
वो भी तुम्हारे लिए छोड़े जा रहे है ..
जरूरत हो अगर ...रख लेना .
लौटा देना फेकना मत ....उसे ..
इन्तजार को भी इन्तजार रहता है वक्त का जो समझे उसे
उसी इंतजार में है ...
सपने तो थे आंख में
वक्त के बीतने का गम ज्यादा था
सब बह गये वक्त की धार में
कश्ती भेजी नहीं तुमने ..
सवार होते भी कैसे ...सब गीले होकर पलकों पे जम गये
.- विजयलक्ष्मी 

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