Sunday, 7 July 2013

जन्मा भी यही खाया भी यही

वन्देमातरम की आवाज सुनकर क्यूँ कान बंद और जुबाँ चिपक जाती है तालू से 
एक बार दिलसे बुलंदी पर लेजाकर बेबाक होकर बोल तो सही 
खौफ न रहेगा मादरे वतन के नाम से सुकून मिलेगा दिल को 
शर्त यही है एक ही ... नमक खाया है तो हलाली करके देख तो सही
जन्मा भी यही खाया भी यही ..गया क्यूँ नहीं बता तो जरा 
एक बार दिल से आरजू ए वतन में कलमा ए वतन जोड़ तो सही 
मस्जिद भी वही मन्दिर भी बने रस्म ए रवायत भाई सी 
चल मान लेंगे अपने दिल से बीज नफरत के बाहर छोड़ तो सही 
सींच रिश्ते को लहू देकर तू लहू लेकर सींचने पर आमादा 
बम बंदूक लेकर डराता है किसे ...तू बचेगा भी तो राज करेगा किसपर सोच तो सही
.- विजयलक्ष्मी 

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