Friday, 19 July 2013

उफ़ मौसम को समझाओ कोई, मेरी नहीं सुनता



ए गुस्ताख न बरस यूँ ,मुश्किलात बहुत होगी ,
खैर औ खबर की फ़िक्र औ तलाश बहुत होगी .

बदगुमाँ हुए बादलों जरा रास्ते बदल दो अब तो 
बिजलियों की तडप में भी तो अजाब बहुत होगी

सफर में खैर औ मकदम कदम कदम जाँनिसारी 
राहे भी टूटीफूटी है सड़के पानी नवाज बहुत होगी 

उफ़ मौसम को समझाओ कोई, मेरी नहीं सुनता
क्या करूं जतन कैसे इसकदर इंतजारी बहुत होगी.

गर है कही खुदारा मेरी आरजू ए रजामंदी तुमसे 
विजय सब्र , दुनिया सारी रंग औ साज बहुत होगी .

- विजयलक्ष्मी 

No comments:

Post a Comment