इस बार नहीं टूटेंगे ..
बहुत टूट चुके हम
बहुत हुआ टूटना हमारा तुम्हे भाता है टूटना हमारा
टूटकर बिखरना बार बार ..
मेरे हौसले को तोडकर बहुत सकूं पाते हो
पंख कतरना मेरे हर बार हर रास्ते पर
सीमाए बना देना हर किसी मोड़ पर
लक्ष्मण रेखाओ में लपेटना ...टुकड़ों को मेरे
हर टुकड़े को दूसरी दिशा में फेंक देना ..जरासंध की तरह
पर ध्यान रहे तुम भीम नहीं हो ..
कृष्ण यूँ तो मिलते नहीं
...लेकिन इस रस्ते पर हर कोई स्वयम को कृष्ण से कम नहीं समझता
मगर हौसलों को तोड़ कर मुझे तोडना ...ये ख्वाब ही रहेगा ..
मौत का डर खत्म होने के बाद शेष क्या रहा
तुम्हारा हर प्रयास विफल ही होगा ..
दर्द अपनी सीमायें तोड़कर बहता है ...अब
कब गुजरेगा उस पथ से वक्त बतायेगा
काँटों को हमने चुन लिया है दामन में अपने
चुभने दो ...अब चैन बेचैन नहीं होता चुभन से
शबनमी से कुछ मोती बिखरते हैं लुडक कर .
अब गोलिया सरहद पर नहीं चलती ..
आग उगलते गोले फूटते हैं छाती पर ..छलनी करते से
सत्य मरता नहीं है ये सनद रखना ताउम्र ...तुम भी ..- विजयलक्ष्मी
बहुत टूट चुके हम
बहुत हुआ टूटना हमारा तुम्हे भाता है टूटना हमारा
टूटकर बिखरना बार बार ..
मेरे हौसले को तोडकर बहुत सकूं पाते हो
पंख कतरना मेरे हर बार हर रास्ते पर
सीमाए बना देना हर किसी मोड़ पर
लक्ष्मण रेखाओ में लपेटना ...टुकड़ों को मेरे
हर टुकड़े को दूसरी दिशा में फेंक देना ..जरासंध की तरह
पर ध्यान रहे तुम भीम नहीं हो ..
कृष्ण यूँ तो मिलते नहीं
...लेकिन इस रस्ते पर हर कोई स्वयम को कृष्ण से कम नहीं समझता
मगर हौसलों को तोड़ कर मुझे तोडना ...ये ख्वाब ही रहेगा ..
मौत का डर खत्म होने के बाद शेष क्या रहा
तुम्हारा हर प्रयास विफल ही होगा ..
दर्द अपनी सीमायें तोड़कर बहता है ...अब
कब गुजरेगा उस पथ से वक्त बतायेगा
काँटों को हमने चुन लिया है दामन में अपने
चुभने दो ...अब चैन बेचैन नहीं होता चुभन से
शबनमी से कुछ मोती बिखरते हैं लुडक कर .
अब गोलिया सरहद पर नहीं चलती ..
आग उगलते गोले फूटते हैं छाती पर ..छलनी करते से
सत्य मरता नहीं है ये सनद रखना ताउम्र ...तुम भी ..- विजयलक्ष्मी
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