चल उसी डगर ये तेरी राह नहीं ,
भूल से आ गया था मुसाफिर ,तू उसकी राह नहीं .
जब याद आएगा बसेरा गुजरी उम्र का
कह जायेगा देख लेना अब कोई चाह नहीं .
तू जुगनू नहीं दीप नहीं क्या मुकाबिल आफ़ताब के
रंग औ खुशबू हुयी पुरानी कुछ नया यहाँ नहीं
तेरे रंग सूख गये ...दरारे हुयी ख्वाब में
जिन्दगी से रुखसती मुबारक ...तुझमे अब कुछ रहा नहीं .- विजयलक्ष्मी
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