तुम जिन्दा हो उठे और
मैं ..
जिन्दा होने के लिए तुम्हारा इंतजार किये था
तुमने आवाज न लगाई और ..
मैं ..
जिन्दा होता तो भला कैसे .- विजयलक्ष्मी
काश ये रात यूँही ठहर जाती आँखों में
तुम नहीं जानते ...इनमे तस्वीर चस्पा है
और आंसूओ से धुल न जाये कहीं
वो रंग अपनी रंगत न बदल डाले को भर दिए है वक्त ने...
......... मेरे और तुम्हारे दरमियाँ .- विजयलक्ष्मी
रात की स्याही बहुत बढ़ रही है
याद की नदी में उतरकर पूरी रात खड़े रहे हम
मगर वक्त रुकता किसके लिए है
तुम अपनी जरूरत पर घोड़े पर सवार होकर चले गये
पिंजरे का पंछी ...बैठकर देखता रहा सैयाद की राह
शिलालेख से तुम धन बरसाते हो और हम खुद को .- विजयलक्ष्मी
मैं ..
जिन्दा होने के लिए तुम्हारा इंतजार किये था
तुमने आवाज न लगाई और ..
मैं ..
जिन्दा होता तो भला कैसे .- विजयलक्ष्मी
काश ये रात यूँही ठहर जाती आँखों में
तुम नहीं जानते ...इनमे तस्वीर चस्पा है
और आंसूओ से धुल न जाये कहीं
वो रंग अपनी रंगत न बदल डाले को भर दिए है वक्त ने...
......... मेरे और तुम्हारे दरमियाँ .- विजयलक्ष्मी
रात की स्याही बहुत बढ़ रही है
याद की नदी में उतरकर पूरी रात खड़े रहे हम
मगर वक्त रुकता किसके लिए है
तुम अपनी जरूरत पर घोड़े पर सवार होकर चले गये
पिंजरे का पंछी ...बैठकर देखता रहा सैयाद की राह
शिलालेख से तुम धन बरसाते हो और हम खुद को .- विजयलक्ष्मी
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