खौफ ए रुसवाई न होता तो ..
कोई पल अधीर यूँ न होता तो
कीमत बहुत भारी है
काम सरकारी है
कैसी माया धारी है
देश की लाचारी है
नीतिगत बिमारी है
सामाजिक दुविधा है
एक और सफर की सुविधा है
जोधाबाई का घर देखा है
अकबर के पतन की रेखा है
वतन की अपनी लक्ष्मण रेखा है
वक्त पास है
लम्हा लम्हा उदास है
लगता है चक्र पैरों में लग गया है अपने भी
रूह और देह जुदा भी साथ भी .- विजयलक्ष्मी
कोई पल अधीर यूँ न होता तो
कीमत बहुत भारी है
काम सरकारी है
कैसी माया धारी है
देश की लाचारी है
नीतिगत बिमारी है
सामाजिक दुविधा है
एक और सफर की सुविधा है
जोधाबाई का घर देखा है
अकबर के पतन की रेखा है
वतन की अपनी लक्ष्मण रेखा है
वक्त पास है
लम्हा लम्हा उदास है
लगता है चक्र पैरों में लग गया है अपने भी
रूह और देह जुदा भी साथ भी .- विजयलक्ष्मी
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