Friday, 26 July 2013

वो दोस्ती क्या जो दरार बनादे मेरे ही घर में

वो दोस्ती क्या जो दरार बनादे मेरे ही घर में ,
दोनों के साथ अलग से करतब देखे हैं हमने भी 

बहुरंगी दुनिया के कुछ रंग देखे हैं हमने भी 
गिरगिट से रंग बदलते इंसान देखे है हमने भी 

ख्वाहिशे ढूँढा किये तुम सरेराह मिलते कहाँ 
हक औ हुतुत मिले क्यूँकर लम्हे देखे हमने भी 

बहुत गुरुर तुमको भी स्वाभिमानी हम भी है 
महफिलों को सजाने वाले बहुत देखे हैं हमने भी

जिस राह मंजिल न हो ,उस डगर जाते नहीं
चोरी के बाद सीनाजोरी दस्तूर देखे हैं हमने भी

पैरहन नहीं पहनते वो जो अपनी हमारी न हो
काले मन उजले तन के लोग संग देखे हैं हमने भी .- vijaylaxmi 

No comments:

Post a Comment