Thursday, 19 June 2014

" एक दीप जल रहा है सहर की आस में .."

नाम लेकर पुकारा तुमने मुझे जिस पल 
निश्छल सी आत्मा उस छोर दी चल 
जहाँ गगन ने धरा को सम्बल दिया 
क्षितिज किसने कहा ...अहसास की दरिया उठी पिघल -- विजयलक्ष्मी 




साँझ चल दी ढलती रात को बुलाने ,
सूरज दिनभर की थकान से सो गया 
कुछ ख्वाब रुपहले से ले पलकों में 
स्वप्नीली ख्वाबों की दुनिया में खो गया --विजयलक्ष्मी 



जो आप किनारा है वहीं किनारे की तलाश में ,
एक दीप जल रहा है सवेरे की आस में---- विजयलक्ष्मी 


रातो का हिसाब तेरी रतजगे में देंगे ,
भोर के सूरज को अर्घ्य भी मिलेगा -- विजयलक्ष्मी 

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