नाम लेकर पुकारा तुमने मुझे जिस पल
निश्छल सी आत्मा उस छोर दी चल
जहाँ गगन ने धरा को सम्बल दिया
क्षितिज किसने कहा ...अहसास की दरिया उठी पिघल -- विजयलक्ष्मी
साँझ चल दी ढलती रात को बुलाने ,
सूरज दिनभर की थकान से सो गया
कुछ ख्वाब रुपहले से ले पलकों में
स्वप्नीली ख्वाबों की दुनिया में खो गया --विजयलक्ष्मी
जो आप किनारा है वहीं किनारे की तलाश में ,
एक दीप जल रहा है सवेरे की आस में---- विजयलक्ष्मी
रातो का हिसाब तेरी रतजगे में देंगे ,
भोर के सूरज को अर्घ्य भी मिलेगा -- विजयलक्ष्मी
निश्छल सी आत्मा उस छोर दी चल
जहाँ गगन ने धरा को सम्बल दिया
क्षितिज किसने कहा ...अहसास की दरिया उठी पिघल -- विजयलक्ष्मी
साँझ चल दी ढलती रात को बुलाने ,
सूरज दिनभर की थकान से सो गया
कुछ ख्वाब रुपहले से ले पलकों में
स्वप्नीली ख्वाबों की दुनिया में खो गया --विजयलक्ष्मी
जो आप किनारा है वहीं किनारे की तलाश में ,
एक दीप जल रहा है सवेरे की आस में---- विजयलक्ष्मी
रातो का हिसाब तेरी रतजगे में देंगे ,
भोर के सूरज को अर्घ्य भी मिलेगा -- विजयलक्ष्मी
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