इतनी ख़ामोशी ,ख़ामोशी भी सहम जाएगी
कोई आवाज तो हो, चलो हम टूटकर बिखर जाते है
कोई शर्त नहीं है ...शर्त लग भी नहीं सकती
न तो सगेवाले हैं कोई न दुश्मनी ही हुयी ढंग में
खेल भी नहीं खेला कोई ..कभी साथ
बस यूँही ....चलते है सफर पर साथ साथ राह अपनी अपनी
सडक के दो छोर जैसे ....
चल रहे हो ..जुदा जुदा ..
दो किनारे नदी के बहते हुए जज्बात के धारे
तुम्हे छुए कभी ..शायद नहीं ,,
सफर जारी है .
खत्म हो जायेगा ,,
थम जाएगी सांसे जिस दिन
और फिर चले जायेंगे कभी न लौटने के लिए
तुम्हे दुःख नहीं होगा ..जो अपना नहीं उसकी कमी कब सालती है भला
हमे रहेगा ...लेकिन
बस इन्तजार ..इन्तजार और बस इन्तजार ,
साथ लिए स्नेहसिक्त से लम्हे जो जिन्दा ही मिलेंगे
हमेशा ...मेरी विदाई के बाद ..तुम्हारे भीतर..
लेकिन बिन मिले कैसी विदाई ..फिर भी
शायद हाँ ...
तब सुनाई देगा सन्नाटे का धडकना ..
कानों में तासे सा बजना..जिन्दा से जज्बात ,
ठहरे रहो ,,.हाँ ..अभी कुछ समय बाकि है
सूरज नहीं है हम ,,चाँद भी नहीं ,,
जुगनू बन नहीं सकते ..
शमा बनकर जल नहीं सकते
तूफ़ान की दिशा बदल सकते है ,,
तुम्हे क्या ...तुम ,,
गुनगुनाओ..
कुछ लम्हों की इजाजत हो गर ..
साथ ले जाने की ..लेकिन
एक गुजारिश है ...
अब किसी को मत कहना सूरज सा दहकने को ,
धरती एक सूरज के दहकने से जल रही है आजकल.क्यूंकि -- विजयलक्ष्मी
कोई आवाज तो हो, चलो हम टूटकर बिखर जाते है
कोई शर्त नहीं है ...शर्त लग भी नहीं सकती
न तो सगेवाले हैं कोई न दुश्मनी ही हुयी ढंग में
खेल भी नहीं खेला कोई ..कभी साथ
बस यूँही ....चलते है सफर पर साथ साथ राह अपनी अपनी
सडक के दो छोर जैसे ....
चल रहे हो ..जुदा जुदा ..
दो किनारे नदी के बहते हुए जज्बात के धारे
तुम्हे छुए कभी ..शायद नहीं ,,
सफर जारी है .
खत्म हो जायेगा ,,
थम जाएगी सांसे जिस दिन
और फिर चले जायेंगे कभी न लौटने के लिए
तुम्हे दुःख नहीं होगा ..जो अपना नहीं उसकी कमी कब सालती है भला
हमे रहेगा ...लेकिन
बस इन्तजार ..इन्तजार और बस इन्तजार ,
साथ लिए स्नेहसिक्त से लम्हे जो जिन्दा ही मिलेंगे
हमेशा ...मेरी विदाई के बाद ..तुम्हारे भीतर..
लेकिन बिन मिले कैसी विदाई ..फिर भी
शायद हाँ ...
तब सुनाई देगा सन्नाटे का धडकना ..
कानों में तासे सा बजना..जिन्दा से जज्बात ,
ठहरे रहो ,,.हाँ ..अभी कुछ समय बाकि है
सूरज नहीं है हम ,,चाँद भी नहीं ,,
जुगनू बन नहीं सकते ..
शमा बनकर जल नहीं सकते
तूफ़ान की दिशा बदल सकते है ,,
तुम्हे क्या ...तुम ,,
गुनगुनाओ..
कुछ लम्हों की इजाजत हो गर ..
साथ ले जाने की ..लेकिन
एक गुजारिश है ...
अब किसी को मत कहना सूरज सा दहकने को ,
धरती एक सूरज के दहकने से जल रही है आजकल.क्यूंकि -- विजयलक्ष्मी
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