Friday, 6 June 2014

" दे जाता है खुशबू, मेरे पास से जब वो गुजरता है"

चीख उसकी ह्रदयभेदी ऐसी गुंजार करता है ,
उसूलात ए वतन पे हुए वारों पे धार धरता है 

खेलकर खेल मौत से जो जीवन कुर्बान करता है 
हकीकत ए बयाँबाजी से झूठ का उद्धार करता है

झूठ जब चलता है बारात लेकर सरेआम चौराहे 
सत्य की शवयात्रा में कफन अपने हाथ धरता है 

नामाकूल सा वक्त उड़ता है जब हाथो से मेरे यूंतो 
तन्हा रास्तों में मुस्कुराकर मेरे साथ गुजरता है

दफन करता है कब्र ए वफा में अपने ही हाथों से
दे जाता है खुशबू, मेरे पास से जब वो गुजरता है
.- विजयलक्ष्मी 

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