"कुछ लकीरे खिंची और तस्वीर दिखे गर
क्या तहरीर औ तदबीर या तमन्ना ए कयामत है
वाकये तस्वीरों के नहीं तदबीरों के चलते हुए ,
तस्वीर में तदबीर का मिलना क्या खूब अदावत है
हर लकीर तेरी मेरी कहानी बनकर उभरी ,
उसपे तेरी निगाहें ये भी क्या खूब नियामत है
हे किस्सा औ तासीर तेरी लकीरों का
मेरे अहसास से मिली खुदारा ये खूब इनायत है
ये लकीरे भी तुम्हारी मुझसे ही वाबस्ता हुयी ,
नजर का फेर कहूं या तमन्ना, क्या खूब इबादत है"--- विजयलक्ष्मी
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