Friday, 13 June 2014

" हर लकीर तेरी ,मेरी कहानी बनकर उभरी ,"



"कुछ लकीरे खिंची और तस्वीर दिखे गर 
क्या तहरीर औ तदबीर या तमन्ना ए कयामत है 

वाकये तस्वीरों के नहीं तदबीरों के चलते हुए ,
तस्वीर में तदबीर का मिलना क्या खूब अदावत है 


हर लकीर तेरी मेरी कहानी बनकर उभरी ,
उसपे तेरी निगाहें ये भी क्या खूब नियामत है

हे किस्सा औ तासीर तेरी लकीरों का
मेरे अहसास से मिली खुदारा ये खूब इनायत है

ये लकीरे भी तुम्हारी मुझसे ही वाबस्ता हुयी ,
नजर का फेर कहूं या तमन्ना, क्या खूब इबादत है"-
-- विजयलक्ष्मी 




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