"खुशबू बिखर गयी ,
और महक उठे हम
कोयल कूक उठी
और चहक उठे हम
झौका मिला गले
और बहक उठे हम
सुर-लहरी गूंजती है
और छनक उठे हम
स्वार्थ की न पूछिए
बस खनक उठे हम ".---- विजयलक्ष्मी
और महक उठे हम
कोयल कूक उठी
और चहक उठे हम
झौका मिला गले
और बहक उठे हम
सुर-लहरी गूंजती है
और छनक उठे हम
स्वार्थ की न पूछिए
बस खनक उठे हम ".---- विजयलक्ष्मी
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