Friday, 6 June 2014

" नेह माधुरी सरस बरस बरस गयी "

" बहते रहे हम और नदी हो गये 
इंतजार की अब जिन्दगी हो गये .

संग साथ की इच्छा लिए भीतर 
होठो पर ठहरी सी बन्दगी हो गये 

वृन्दावन सा सज गया हृदय में 
प्रेममाय स्वर मृदुल बांसुरी हो गये 

प्रीतिमय मोती मुस्कुराए नयन 
सजल नेह संग बन्दगी हो गये 

नेह माधुरी सरस बरस बरस गयी 
सपने सब हठीले जिन्दगी हो गये ."- विजयलक्ष्मी
 

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