वो दिन सुंदर थे कितने
जब बचपन अपना बीत रहा था||
आँखों में ठहरे थे सपने
कदम कदम सब बीत रहा था ||
जलभर जलधर नीरवता
जैसे हार हारकर जीत रहा था||
रक्तिम वर्ण लिए गगन
समय अन्धकार पे बीत रहा था ||
मेरे जीवन की मधुर स्मृति
चित्र मन:पटल पर खींच रहा था||--- विजयलक्ष्मी
जब बचपन अपना बीत रहा था||
आँखों में ठहरे थे सपने
कदम कदम सब बीत रहा था ||
जलभर जलधर नीरवता
जैसे हार हारकर जीत रहा था||
रक्तिम वर्ण लिए गगन
समय अन्धकार पे बीत रहा था ||
मेरे जीवन की मधुर स्मृति
चित्र मन:पटल पर खींच रहा था||--- विजयलक्ष्मी
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