Monday 9 June 2014

" और सत्य का कत्ल हो ही गया "

झूठ दहाड़े मारकर रोया 
सच के कफन को भिगोया
बहती धार कलदार को गिला न कर सकी 
वकीलों की मुट्ठी पुलिसिया वर्दी की हमदर्दी 
बहुत मजबूत मक्कड़जाल फैला था 
तथापि सच जानता है ...सच क्या है 
लेकिन गवाह नदारत थे 
बिके हुए लोग चुप ही रहते हैं 
बोलना और शब्दों को कसौटी पर तौलना मना है 
आज अंगुलिमाल जिन्दा हो गया फिर से 
उसमे छिपे वाल्मीकि को ढूँढना कठिन ही नहीं असम्भव सा हो गया है
अब सीता को शरण नहीं मिलेगी
बस दौपदी चीरहरण की खबर मिलेगी
कृष्ण अकेला पड़ गया ..और ..पांडव हार चुके है स्वाभिमान जुए में
दुशासन ही दुशासन है चारो तरफ ..
विश्वास की जड़े खोखली हो रही है मानवता के बाग़ में

और सत्य का कत्ल हो ही गया जब ...
झूठ दहाड़े मारकर रोया
सच के कफन को भिगोया
तथापि सच जानता है ...सच क्या है
लेकिन गवाह नदारत थे --- विजयलक्ष्मी

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