Thursday, 19 June 2014

" क्या रूह की आवाज सुनी तुमने , मन आह्लादित हुआ"

नींद ..जैसे गश खाकर गिरना चाहती है 
पलको पर हथियार बंद होकर ,
पलकों पर ख्वाब का पहरा ठहरा 
जब अओगे ..इंतजार बिखरा मिलगा जमीन--- विजयलक्ष्मी 


जरा जरा बात पर दर बंद करेंगे घर वीराना होगा ,
हमने नदी से नहरे निकालने की कसम खाई है -- विजयलक्ष्मी 


रुके हैं कदम आज भी उसी मोडपर ,
मुडकर देखिये,गये थे जहाँ छोडकर -- विजयलक्ष्मी 


तेरा जलना खुद में ,जला गया मुझको ,
वरना सच तो यही है ,माचिस को जलना है-- विजयलक्ष्मी 


" क्या रूह की आवाज सुनी तुमने , मन आह्लादित हुआ ,
सुनो ,.....झरोखे पर आओ ,द्वार पर ताला है जज्बात का "--- विजयलक्ष्मी 

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