तू सत्य है तो ,चीख मुर्दा बस्ती जल उठे ,
और लाशे जो दफन हैं ........उठ खड़ी हो ..
क्यूँ न ..लिख दूं इक पाति
क्या लिख दूं बतलादो
सत्य कष्टकारी है
असत्य विनाशकारी है
दम्भ लिख नहीं सकते
सत्य तुम समझना नहीं चाहते
क्या लिखूं ..हे अहो ,तुम ही कहो
क्या सगुण होकर निर्गुण की व्यथा लिखूं
या ..निर्गुण को सगुण से मिलाना लिख दूं
उपासना की राह बहुत क्लिष्ट होती है
उसपर निर्गुण उपासना...
इक अहसास जिन्दा सा लिए
मिलते हुए हर मोड़ पर ..हर छोर पर
बिछोह किसे भाता है ...
किन्तु ...रूठने से स्वप्न टूटता है
मुझे तन्द्रा से यूँ न जगाओ
मेघ बरसे तो बह जाएगी ..बस्ती तेरी ..हस्ती मेरी
और बढ़ जायेगा एकाकीपन ...
देह को भेजकर विदेह हो चुके
वो जो पसरी है मृतप्राय सी हो
देखो ...तुम्हारे साथ कौन अंश हैं खड़ा ..
यूँ उठकर टहलने से ...नजरे घुमाने से सत्य नहीं बदलेगा
ठहर जाओ ..रुको ...निहारो इधर ..
और सोचो .....अब ,
चौको नहीं ,,,यह मैं ही हूँ !! ------विजयलक्ष्मी
और लाशे जो दफन हैं ........उठ खड़ी हो ..
क्यूँ न ..लिख दूं इक पाति
क्या लिख दूं बतलादो
सत्य कष्टकारी है
असत्य विनाशकारी है
दम्भ लिख नहीं सकते
सत्य तुम समझना नहीं चाहते
क्या लिखूं ..हे अहो ,तुम ही कहो
क्या सगुण होकर निर्गुण की व्यथा लिखूं
या ..निर्गुण को सगुण से मिलाना लिख दूं
उपासना की राह बहुत क्लिष्ट होती है
उसपर निर्गुण उपासना...
इक अहसास जिन्दा सा लिए
मिलते हुए हर मोड़ पर ..हर छोर पर
बिछोह किसे भाता है ...
किन्तु ...रूठने से स्वप्न टूटता है
मुझे तन्द्रा से यूँ न जगाओ
मेघ बरसे तो बह जाएगी ..बस्ती तेरी ..हस्ती मेरी
और बढ़ जायेगा एकाकीपन ...
देह को भेजकर विदेह हो चुके
वो जो पसरी है मृतप्राय सी हो
देखो ...तुम्हारे साथ कौन अंश हैं खड़ा ..
यूँ उठकर टहलने से ...नजरे घुमाने से सत्य नहीं बदलेगा
ठहर जाओ ..रुको ...निहारो इधर ..
और सोचो .....अब ,
चौको नहीं ,,,यह मैं ही हूँ !! ------विजयलक्ष्मी
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