आज फेसबुक पर सब अपने अपने पापा को best wishes देने में लगे हैं ......सच बताना कितने लोगो के पापा फेसबुक खोलकर देखतें हैं ,...क्या मात्र एक दिन की बधाई उनकी ख़ुशी है ,क्या कभी कुछ घड़ी उनके पास बैठकर देखा है ...जाना है जिन्दगी के उन अनछुए लम्हों को जो किसी को बांटने की उन्हें फुर्सत न हुयी ...क्यूंकि उन्हें जाना होता था धन कमाने ...हमारी शिक्षा ,हमारी किताबे हमारी जरूरत को पूरी करने ..... सुबह जल्दी जाना शाम गये घर लौटना ,,,कभी डांटना कभी परेशान होना ....कभी तसल्ली के दो शब्द कहे किसी ने अपने पापा को ...एक बार सिर्फ एक बार कहकर देखो ..".पापा आप परेशान मत हुआ करो मैं हूँ न "!!........मैं नहीं कह सकती अपने पापा को लेकिन ..हर वक्त साथ है मेरे ..पापा भी माँ भी .......आप दोनों थे तो हम हैं ..आज है ..घर है...बहन भाई है... रिश्ते नाते हैं ...क्यूंकि इन सबमें आप दिखाई देते हो है और हमारे भीतर आपके दिए हुए संस्कार हैं ...आपका प्यार और एक सुखद अहसास ...शुक्रिया , भगवान जी ..मेरे पापा माँ को खुश रखना अपने पास !!
पिता का दिन ,,
जिसने होम करदी जिन्दगी सारी
अपनी ख्वाहिश न्यौछारी सारी
कम रोटी देखकर कह दिया भूख मिट गयी है,,
बच्चो के आगे इच्छाए सिमट गयी हैं
धूप में तपकर निवाले खिलाता है
अपने फटे जूते छोड़ बेटे को खरीदवाता है
शौक भूलकर पैसे बचाता है
उधारी करके भी आगे बढाता है ...
कैसा समय आया ...छोडकर वृद्धआश्रम में अपने पिता को ..
दोस्तों को पिता दिवस की बधाई भिजवाता है ,,
लुटाई जिसने घड़ियाँ जिन्दगी की तुझपर ...
उसी पिता के हिस्से में सिर्फ एक दिन आता है ||
वाह री संस्कृति वाह रे संस्कार ..
भारत को इण्डिया बनते देख सर शर्म से झुक जाता है
ये मेरे भारत के संस्कार नहीं
ये हिन्दुस्तानी विचार नहीं
मेरे राष्ट्र में चरण छूकर नित आशीष लिया जाता था
पहली थाली पर नाम पिता का आता था ,
एक दिन नहीं एक बरस नहीं ,
हर पल मेरे नाम से पिता का नाम ही लिखा जाता था
सच बोलूं बस इसीलिए मेरा भारत सोने की चिड़िया कहलाता था ||
---------- विजयलक्ष्मी
....माँ का एक दिन ,,,एक दिन पिता का ,...बाकी दिन ..अरे हाँ एक दिन राखी का याने एक दिन बहन का और एक दिन टीके का मतलब भाई का ....दादा दादी का भी एक दिन हो गया एक हुआ दोस्ती के नाम ...एक ... और बाकी दिन का क्या .. वैसे एक राज की बात बताऊँ ...कोई नहीं बोलेगा ....मन में घुटते रहेंगे लेकिन .....क्यूंकि कुछ पुरुष जनक तो होते हैं किन्तु पिता नहीं ....बच्चे उनके लिए सम्पत्ति की तरह होते हैं जिसे जैसे चाहे घुमाया जा सके ....बच्चों पर निर्णय थोपते हैं ...पूरा न करने पर उन्हें समय समय पर इन बातों का अहसास कराया जाता है .....देनी तो नहीं चाहिए किन्तु ...जनक बनने के साथ पिता भी बने ...रिश्तों में मिठास और प्रगाढ़ता उम्र भर रहेगी और रिश्ते की सार्थकता भी सिद्ध होगी | ---- विजयलक्ष्मी
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