Saturday, 15 February 2014

"बंदूक की गोली कनपटी पर रखता क्या है"

वक्त की ओर मुडकर देखता क्या है 

ये बता वक्त तेरे हाथ में रखता क्या है 



ये गरीबी के नजारे आंख में मोती दिए 


हुयी जीभ कसैली भूख से चखता क्या है 



क्या दिया है आज की पीढ़ी को इनाम 


दिखावा क्यूँ बता भीतर दहकता क्या है 



वासना की आग का मंजर लुटती आबरू 


पैरहन देह की कहाँ चरित्र रखता क्या है 



आत्मा की प्यास ही समन्दर पी सकेगी 


खौलता अहसास लहू में आंच रखता क्या है 



बिखरे हुए युवा लहू को सिमटना क्यूँ 


पाकीजगी से आत्मा तक रखता क्या है 



शब्द शब्द अंगार बन उड़ेगा नहीं गर 


पूछना होगा कलम में तू रखता क्या है 



इन्सान की कीमत अगरचे चंद सिक्के हैं 


बंदूक की गोली कनपटी पर रखता क्या है - विजयलक्ष्मी 

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