Tuesday, 11 February 2014

क्या लिखना कत्ल भी किया ,उसीने कभी अपनेपन का अहसास कराया था

कथा लिखनी क्या व्यथा बतानी क्या 

बीतते पलों की कहानी सुनानी क्या 


न लिख लहू छितराकर बिखरा क्यूँ 


न लिख आंसू टूटकर बिखरा क्यूँ 


न लिख ओस का सूखना 


न लिख जिन्दगी का रूठना 


क्या लिखना जो गुजरे अखर कर लम्हे


क्या लिखना जो गुजरते तन्हा सफर पर लम्हे 


क्या लिखना दर्द को भला 


क्या लिखना अहसास जो मरते रहे 


क्या लिखना वतन कितना बिखरता रहे 


क्या लिखना रूह का तडपना 


क्या लिखना किसी गरीब का मरना 


क्या लिखना भूख जान भी लेती है 


क्या लिखना प्यास समन्दर पी लेती है


क्या लिखना चाँद निगला जा चुका 


क्या लिखना सूरज का छिपना 


क्या लिखना क्षितिज धुन्धलाया क्यूँ 


क्या लिखना दिल पथराया क्यूँ 


क्या लिखना सितारों का टूटकर गिरना 


क्या लिखना धरती का बरसात से मरना 


क्या लिखना जले पर नमक भी डाल दिया गर 


क्या लिखना कोई कत्ल भी कर दिया गर 


क्या लिखना सरिता लहू की धारा बनी 


क्या लिखना जिन्दगी और मौत में ठनी


क्या लिखना तमाशा औ जगहंसाई अपनों की 


क्या लिखना स्वार्थ की खातिर तलवार का घोपना 


क्या लिखना मुहब्बत में सबकुछ सौपना 


क्या लिखना राजनीती कलम औ दुनिया की


क्या लिखना रेजा रेजा इज्जत मुनिया की 


क्या लिखना चौराहे इज्जत उछालना 


क्या लिखना बहु को घर से बेआबरू कर निकालना 


क्या लिखना हर चेहरे पर मुखौटा है 


क्या लिखना स्वार्थ की खातिर जरूरी धोखा है 


क्या लिखना शेर भी बस खल ओढ़े है 


क्या लिखना ताकतवर सबका लहू निचौडे है 


क्या लिखना अंधे की रेवड़ी हर हाल अपनों में 


क्या लिखना दिखे गर मौत सपनों में


क्या लिखना जागना रातो का 


क्या लिखना इंतजार सिसकती रातों का 


क्या लिखना सूखता शजर टूटकर गिरता भरोसे का मंजर


क्या लिखना मेरी झोपडी का छान उतारा उसी ने जिसने चढ़ाया था 


क्या लिखना कत्ल भी किया ,उसीने कभी अपनेपन का अहसास कराया था .जिन्दगी का एक 

सबक पढ़ाया था बना खुदा सा सरमाया था ...

वाह रे भगवान ...तू ,किस रूप में आया था - विजयलक्ष्मी
 


1 comment:

  1. बहुत ही सुन्दर और उत्कृष्ट प्रस्तुति, धन्यबाद .

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