सियासती खेल में मेरा वतन लगा दांव पर ,
काले गहरे घने बादल दीखते थे मेरे गाँव पर
वोट बिकते रहे चंद सिक्के ,साड़ी औ शराब में
जहनियत खरीदी,जिसका कुछ नहीं था दांव पर.
चाक गिरेबाँ घूमते थे कौई नहीं सुनता जहां
ईमान से जिसकी सुनी,उसीने लगाया दांव पर
हर कोई बाजार में खड़ा है गोरा तन काला मन
गा रहा था गीत खुद के खेला हो जैसे जान पर
कोई पुश्तों को रो रहा मांगता कीमत उनकी
खुद कुछ किया नहीं बताता है सब ईमान पर
कुछ टपके आसमां से लटके मिले खजूर पर
मिट गये वो सरफरोश सबकुछ लगा दांव पर .- विजयलक्ष्मी
काले गहरे घने बादल दीखते थे मेरे गाँव पर
वोट बिकते रहे चंद सिक्के ,साड़ी औ शराब में
जहनियत खरीदी,जिसका कुछ नहीं था दांव पर.
चाक गिरेबाँ घूमते थे कौई नहीं सुनता जहां
ईमान से जिसकी सुनी,उसीने लगाया दांव पर
हर कोई बाजार में खड़ा है गोरा तन काला मन
गा रहा था गीत खुद के खेला हो जैसे जान पर
कोई पुश्तों को रो रहा मांगता कीमत उनकी
खुद कुछ किया नहीं बताता है सब ईमान पर
कुछ टपके आसमां से लटके मिले खजूर पर
मिट गये वो सरफरोश सबकुछ लगा दांव पर .- विजयलक्ष्मी
No comments:
Post a Comment