" सूरज की प्यास ओस को पीकर भड़कती है "
वक्त का घोडा अंजुरी नहीं देखता ...सूरज की प्यास ओस को पीकर भड़कती है ..ख्याल जिन्दगी को नजर देते हैं और उदासी खिलती है चमन में काँटा बनकर ....शूल का दर्द महकता है सहरा में गुल को तो खिल्र मुरझाना होता है .- विजयलक्ष्मी
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