बुतों को न गिला होता है न शिकवा कोई ,
इस काम के लिए इंसा ही काफी है जनाब .
"न चुभन काँटों की होती है न दर्द सीने में
चीखकर चिल्लाना इंसा ही काफी हैं जनाब
चाँदनी खिलती मिले अमावस के बाद भी
यूँ जिन्दा रहना औरत ही काफी है जनाब
यूंतो बुतपरस्ती करते है सभी कहते नहीं
ताजमहल कब्र ए मुहब्बत काफी है जनाब
कानून औरत के लिए सारे पर्दा चुप्पी संग
जिन्दा बुत बनने को औरत काफी है जनाब".- विजयलक्ष्मी
इस काम के लिए इंसा ही काफी है जनाब .
"न चुभन काँटों की होती है न दर्द सीने में
चीखकर चिल्लाना इंसा ही काफी हैं जनाब
चाँदनी खिलती मिले अमावस के बाद भी
यूँ जिन्दा रहना औरत ही काफी है जनाब
यूंतो बुतपरस्ती करते है सभी कहते नहीं
ताजमहल कब्र ए मुहब्बत काफी है जनाब
कानून औरत के लिए सारे पर्दा चुप्पी संग
जिन्दा बुत बनने को औरत काफी है जनाब".- विजयलक्ष्मी
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