कुछ फ़ाइले गुम है या उलझी दफ्तरी जाल में
जैसे उलझी जमींन अपनी राजतन्त्र के जाल में
चकबंदी हुयी खेत की कितने बीते साल में
पेड़ नीम का खड़ा हुआ है सरपंची चौपाल में
खेत खरीदे थो जो हमने खून पसीने के पैसो से
पट्टा दिया पटवारी ने खेत बोओ अब ताल में
पानी की थी लम्बी कतारे सुना था नल खूब लगे
बूँद न निकली उनमे से सुखा पड़ा इस साल में
बीज उधारी खाद तुम्हारी बैल किराए आन लिए
ब्याज बैंक का ,फांसी खाई, बीबी मरी ससुराल में .
-- विजयलक्ष्मी
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