"खींचो कमान इस तरह आकाश तक टंकार हो ,
दृष्टि आँख ही पर रहे जब मछली का शिकार हो
प्रचंड ज्वाला कापती है ज्यूँ ठण्ड का शुमार हो
आंख चौखट पर लगी ज्यूँ युगों से इन्तजार हो
चीर वक्त ,मौन मुखरित ज्यूँ दर्द का ही सार हो
क्यूँ न आकाश से धरा लौ स्वर वितान तान दो
मौत से मुखरित हुए हैं जिन्दगी को निशान दो
चीखती पुकार का वक्त की छाती पर आह्वान हो
जिस रस्ते कदम पड़ चले युगों युगों प्रमाण हो
माधुर्य सरस वासन्ती ढंग सत्य-पथी जहान हो " .-- विजयलक्ष्मी
दृष्टि आँख ही पर रहे जब मछली का शिकार हो
प्रचंड ज्वाला कापती है ज्यूँ ठण्ड का शुमार हो
आंख चौखट पर लगी ज्यूँ युगों से इन्तजार हो
चीर वक्त ,मौन मुखरित ज्यूँ दर्द का ही सार हो
क्यूँ न आकाश से धरा लौ स्वर वितान तान दो
मौत से मुखरित हुए हैं जिन्दगी को निशान दो
चीखती पुकार का वक्त की छाती पर आह्वान हो
जिस रस्ते कदम पड़ चले युगों युगों प्रमाण हो
माधुर्य सरस वासन्ती ढंग सत्य-पथी जहान हो " .-- विजयलक्ष्मी
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