सुनके गम मेरा जो हंसा करते है ,
बात बात पर तंज कसा करते हैं .
गुलों की तारीफ करते हैं सभी
भूले क्यूँ संग कांटे भी बसा करते हैं
पुरवाई भी चलती छुरी की माफिक
लम्हे तन्हाई में जब कटा करते हैं
इन्तजार कभी हमको कभी तुमको
लम्हात ए वफा साथ चला करते हैं
जिस्म औ रूह की बात नहीं है
हमसफर तो साथ चला करते हैं .-- विजयलक्ष्मी
बात बात पर तंज कसा करते हैं .
गुलों की तारीफ करते हैं सभी
भूले क्यूँ संग कांटे भी बसा करते हैं
पुरवाई भी चलती छुरी की माफिक
लम्हे तन्हाई में जब कटा करते हैं
इन्तजार कभी हमको कभी तुमको
लम्हात ए वफा साथ चला करते हैं
जिस्म औ रूह की बात नहीं है
हमसफर तो साथ चला करते हैं .-- विजयलक्ष्मी
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