तिमिर का आह्वान है प्रभा
तृषा तृषित हो मारीचिका
अम्बर न धरती को बादल दिया
क्षितिज पर अम्बर से मिलती धरा
स्वीकार कब नियन्त्रण स्वतंत्रता
अस्वीकार कब निमन्त्रण किसी का
स्नेह की बाती जलती है यहाँ
बुरा हो किसी का व्यर्थ नहीं चाह
बंद दरों के भीतर से बुलाया गया हूँ
दर्द की पीड़ा की सतह तक लाया गया हूँ
इन्सान ही था शायद बताया गया हूँ
अज्ञान की मचान से उठाया गया हूँ
ईमान बिकता जहां दूकान पर लाया गया हूँ
बस गुंजाता हूँ मुखर प्रेम मौन होकर
पाने की कोशिश कर रहा हूँ खुद को खोकर
लाया गया राह तेरी बेहोश होकर
स्त्रैण कलंक का टीका बनाया गया हूँ
इसीलिए पर्दे के भीतर बैठाया गया हूँ
हूँ मुखर लेकिन आज भी
सजाता है सर पे दिखावे को ताज आज भी
लो आवाज आई ....फिर पुकारा गया हूँ
इक नई दुनिया का नाम लेकर उचारा गया हूँ .-- विजयलक्ष्मी
तृषा तृषित हो मारीचिका
अम्बर न धरती को बादल दिया
क्षितिज पर अम्बर से मिलती धरा
स्वीकार कब नियन्त्रण स्वतंत्रता
अस्वीकार कब निमन्त्रण किसी का
स्नेह की बाती जलती है यहाँ
बुरा हो किसी का व्यर्थ नहीं चाह
बंद दरों के भीतर से बुलाया गया हूँ
दर्द की पीड़ा की सतह तक लाया गया हूँ
इन्सान ही था शायद बताया गया हूँ
अज्ञान की मचान से उठाया गया हूँ
ईमान बिकता जहां दूकान पर लाया गया हूँ
बस गुंजाता हूँ मुखर प्रेम मौन होकर
पाने की कोशिश कर रहा हूँ खुद को खोकर
लाया गया राह तेरी बेहोश होकर
स्त्रैण कलंक का टीका बनाया गया हूँ
इसीलिए पर्दे के भीतर बैठाया गया हूँ
हूँ मुखर लेकिन आज भी
सजाता है सर पे दिखावे को ताज आज भी
लो आवाज आई ....फिर पुकारा गया हूँ
इक नई दुनिया का नाम लेकर उचारा गया हूँ .-- विजयलक्ष्मी
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