अहले वतन के नाम हम रुबाइयाँ गाते है,
छोड़ दी पतवार कब की बस डूबते जाते हैं
अब खौफ नहीं चाहे तैर मरे या डूब मरे
तुम वजूद ढूंढो अपना, हम भूलते जाते हैं.-- विजयलक्ष्मी
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हम अहसास बुनना सीख रहे है भीतर अपने ,
जिनमे कांटे भी लगते हो जैसे शीतल सपने .-- विजयलक्ष्मी
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छोड़ दी पतवार कब की बस डूबते जाते हैं
अब खौफ नहीं चाहे तैर मरे या डूब मरे
तुम वजूद ढूंढो अपना, हम भूलते जाते हैं.-- विजयलक्ष्मी
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हम अहसास बुनना सीख रहे है भीतर अपने ,
जिनमे कांटे भी लगते हो जैसे शीतल सपने .-- विजयलक्ष्मी
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