हलक से हलाक तक पहुंच रही है जनता ..और नेता ...फर्श से अर्श पर ,,देश का अन्नदाता ..किसान भूखो मरने के कगार पर और... खाद्य योजना हवा में उड़ रही हैं ...घरेलू उद्योग के सियापे पड़े हैं और टेलीविजन पर निर्माण की नौटंकी ..सातवे आसमान पर ..वाह रे हिन्दुस्तान ..तेरी किस्मत ..जिसकी औलादे ही माँ को नोचकर खाने के बाद बेच कर भी खाना चाहती हो ..मेड ही खेत खा रही हो तो ....और जमीं बदली न जा सके तो माली बदल देना ही उचित है .क्यूंकि आजादी के सातवे दशक में भी सबसे अधिक सत्ता पर काबिज लोग आज भी विकास का सिर्फ सपना ही दिखा रहे हैं ...किसान की हत्या का जिम्मेदार कौन है आखिर ...ये योजनाये बनाता कौन है भला ..चुनाव के वक्त कर्मचारियों को डी ए ,टी ए बढ़ाकर खुश कर देते हैं ..और फिर पांच साल तक लूट मचाते हैं ,,,सैकड़ो के लाखों नहीं करोड़ो हो गये और गरीब और भी गरीब ...ये गरीबी हटायेंगे या गरीब को ..सोचना तो पड़ेगा ही आखिर --एक नागरिक ( विजयलक्ष्मी )
तल्ख़ किन्तु कमोबेस ऐसा ही है ....
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